Tuesday, February 15, 2011

ghazal

मौसमे-गुल में यादे-यार का ज़ख्म
जैसे दरके हुए अनार का ज़ख्म


कर के वादों पे एतबार उनके
खा रहा हूँ मैं इन्तिज़ार का ज़ख्म


जिस को रहना है फूल के नज़दीक
उसको खाना पड़े गा खार का ज़ख्म


रूठ कर फिर वो मान जाते हैं
कितना प्यारा है उनके प्यार का ज़ख्म


याद का कारवां गुज़र तो गया
दे गया आँख को ग़ुबार का ज़ख्म

काश हम मुत्तहिद रहें फ़ारूक़
फिर न झेलें इस इन्तिशार का ज़ख्म

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