ये कौन देता है आवाज बार बार मुझे
मैं अपने चाहने वालों को पीछे छोड़ आया
ये कौन देता है आवाज़ बार बार मुझे
वो एक नाम जिसे जानता था तू या मैं
एगर हो याद उसी नाम से पुकार मुझे
जो तू नहीं तो सुहाने महकते मौसम का
हर एक फूल भी लगने लगा है खार मुझे
वो एक नाम जिसे जानता था तू या मैं
अगर हो याद उसी नाम से पुकार मुझे
तेरा इशारा भी हो जाए तो संवर जाऊं
मैं तेरे चक पे मिटटी हूँ अब सँवार मुझे
ये नफरतों का समंदर है ख़त्म पर शायद
दिखाई दी है परिंदों की एक क़तार मुझे
बस उस की एक झलक मैं ने दीखी थी फ़ारूक़
फिर उसके बाद न था दिल पे अख्तियार मुझे
अपना भरम जहाँ में बनाये हुए हूँ मैंइज्ज़त किसी तरह से बचाए हुए हूँ मैंखुद हो रहा हूँ जिनकी लवों से मैं रख रखऐसे भी कुछ चारघ जलाए हुए हूँ मैं
दौरे माज़ी भुला दिया जाए
जिस तरह बन पड़े जिया जाए
तुझ से दूरी मेरा मुक़द्दर है
अब मुक़द्दर को क्या किया जाए
कमाल के अशआर रक़म किए जनाब आपने. 'फ़िराक़' की जमीन में शेर कहना, और उससे बेहतर कहना, मोजिज़ा ही कहा जाएगा. इस कामयाब ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद.
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